सूरजगढ़ निशान

surajgarh nishan darshan

हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा

ॐ श्री श्याम देवाय नमः

खाटूश्यामजी मंदिर के शिखर पर सूरजगढ़ का निशान ही क्यों चढ़ता है ?

बाबा श्याम फाल्गुन मेले में वैसे तो लाखो भक्त, लाखो निशान चढाते है पर एक निशान ऐसा होता है जो सबसे खास है, हो भी क्यों ना, खुद बाबा श्याम की मर्जी पर यह निशान हर साल उनके शिखर पर साल भर लहराता है। सूरजगढ़ निशान को शिखर बंद पर चढ़ाये जाने के पीछे एक अमर गाथा जुड़ी है। आज से कुछ वर्षों पहले फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को खाटू धाम में कई स्थानों से आये भक्तों में सबसे पहले शिखर बंद पर निशान चढ़ाने की होड़ मच गई थी। जबकि सूरजगढ़ का निशान पुराने समय से चढ़ता आ रहा था। लेकिन उसके बावजूद दूर-दूर से आये सभी भक्तगण अपनी-अपनी जिद्द पर अड़े रहे।

In Detailed :

मेले के दौरान बाबा श्याम को लाखों निशान चढ़ाए जाएंगे, मगर सूरजगढ़ का निशान सबसे खास है। इससे जुड़ा इतिहास भी बेहद रोचक है। यही वो निशान है, जो मेले के दौरान चढ़ाए जाने के बाद सालभर बाबाश्याम के मुख्य शिखरबंद पर लहराता है। झुंझुनूं जिले के सूरजगढ़ से श्याम भक्त हर साल बड़े उत्साह से गाजे-बाजे के साथ अपनी ही धुन में नाचते-गाते खाटू पहुंचकर यह निशान लख दातार को अर्पित करते हैं। इसे सूरजगढ़ वालों के निशान के नाम से जाता है। खास बात यह है कि सूरजगढ़ वालों के इस जत्थे में कस्बे व आस-पास के हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। ये श्रद्धालु पैदल ही खाटूधाम पहुंचते हैं। निशान चढ़ाने के बाद पैदल ही घर लौटते हैं। यह परम्परा कई सालों से जारी है।

ज्यादातार श्रद्धालु पगड़ी बांधे होते हैं। इसके अलावा सिर पर सिगड़ी भी रखे होते हैं, जिसमें ज्योत जलती रहती है। कहते हैं कि रास्ते में भले ही आंधी-तुफान या बारिश आए, मगर सिगड़ी में बाबा की ज्योत निरंतर जलती रहती है। निशान पदयात्रा के साथ कलाकार भजन व धमाल गाते हुए खाटूधाम पहुंचते हैं। पदयात्रा का कस्बे में जगह-जगह फूल बरसा कर स्वागत किया जाता है। ये पदयात्रा सूरजगढ़ से सुलताना, गुढ़ा, उदयपुरवाटी, गुरारा, मंढा होते हुए खाटूश्यामजी पहुंचती है। द्वादशी के दिन यह निशान बाबा श्याम को चढ़ाया जाता है।

बाबा श्याम फाल्गुन मेले में वैसे तो लाखो भक्त, लाखो निशान चढाते है पर एक निशान ऐसा होता है जो सबसे खास है, हो भी क्यों ना, खुद बाबा श्याम की मर्जी पर यह निशान हर साल उनके शिखर पर साल भर लहराता है

खाटूश्यामजी मंदिर के शिखर पर सूरजगढ़ का निशान ही क्यों चढ़ता है ?

सूरजगढ़ निशान को शिखर बंद पर चढ़ाये जाने के पीछे एक अमर गाथा जुड़ी है। आज से कुछ वर्षों पहले फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को खाटू धाम में कई स्थानों से आये भक्तों में सबसे पहले शिखर बंद पर निशान चढ़ाने की होड़ मच गई थी।

जबकि सूरजगढ़ का निशान पुराने समय से चढ़ता आ रहा था। लेकिन उसके बावजूद दूर-दूर से आये सभी भक्तगण अपनी-अपनी जिद्द पर अड़े रहे। बाद में सर्व सम्मति से यह निर्णय लिया गया कि जो भी भक्त श्याम मन्दिर खाटू धाम में लगे ताले को बिना चाबी के खोलेगा वही निशान सबसे पहले चढ़ायेगा। सभी दूर-दूर से आये भक्तों को मौका दिया गया लेकिन कोई मोरछड़ी से ताला नहीं खोल पाया। बाद में भक्त शिरोमणि श्री गोवर्धन दास जी ने अपने शिष्य मंगलाराम को मोर पंखी से ताला खोलने का आदेश दिया। भक्त मंगलाराम जी ने अपने गुरू गोवर्धन दास जी का आदेश पाकर बाबाश्याम से प्रार्थना करके तथा उनसे आशीर्वाद लेकर झट से ताला बिना चाबी के खोल दिया। उसी चमत्कार के कारण सूरजगढ़ निशान फाल्गुन मास की प्रत्येक द्वादशी को दोपहर में शिखर बंद के ऊपर चढ़ाया जाता है।

सूरजगढ़ निशान : दैनिक दिव्य दर्शन

सूरजगढ़ निशान : दैनिक दिव्य दर्शन - Oct 13, 2023

Surajgarh Dham Shyam

सूरजगढ़ निशान : दैनिक दिव्य दर्शन - Oct 13, 2023

Surajgarh Today Dars

सूरजगढ़ निशान : दैनिक दिव्य दर्शन - Oct 05, 2023

Surajgarh Dham Shyam

सूरजगढ़ निशान : दैनिक दिव्य दर्शन - Oct 01, 2023

Surajgarhdham Darsha

सूरजगढ़ निशान : दैनिक दिव्य दर्शन - Oct 01, 2023

Surajgarh Dham Darsh

सूरजगढ़ निशान : दैनिक दिव्य दर्शन - Oct 01, 2023

Surajgarhdham Darsh

राम मंदिर: एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल की जानकारी

राम मंदिर के बारे में और जानें

रामायण : उपन्यास के प्रमुख चरित्र

Bharata - भरत

रामायण, वेद व्यास द्वारा रचित एक महाकाव्य है जो दुनियाभर में मान्यता प्राप्त है। यह काव्य आदिकाव्य के रूप में जाना जाता है और राम-लक्ष्मण-सीता की कथा को बताता है। रामायण में विभिन्न महान पात्रों की उपस्थिति होती है, और उनमें से एक महत्वपूर्ण पात्र है भरत। भरत रामचंद्र जी के चारों भाइयों में से एक है और काव्य के चरित्रों की महत्ता को दर्शाने वाले अहम पात्रों में से एक है।

भरत का वर्णन करते समय, उसके भावुक और नरम हृदय की गुणवत्ता का उल्लेख किया जाता है। वह एक न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजकुमार है, जिसे अपनी माता की और उसके पिता की उपासना करने की गहरी इच्छा होती है। भरत को अपने भाइयों के लिए गहरा प्रेम होता है और उन्हें राजसी ताज के लिए वापस आने की प्रार्थना करता है। उसका उदात्त और विनम्र स्वभाव उसे दूसरों की भलाई के लिए समर्पित बनाता है।

भरत को उनके पिता का आदर्श राजा के रूप में देखा जाता है। उसे राज्य प्रशासन की कला का बहुत अच्छा ज्ञान होता है और वह धर्मप्रियता, न्याय, और न्याय की आदान-प्रदान को प्रमाणित करता है। भरत का राजधर्म के प्रति आदर्श और समर्पण उसे एक महान शासक के रूप में स्थानांतरित करता है।

भरत का विचारशील और धार्मिक स्वभाव उसे एक महान पुरुष के रूप में प्रमाणित करता है। वह अपने भ्राताओं की नरमता और भगवान राम की प्रेमपूर्ण भूमिका को समझता है और उन्हें सम्पूर्ण भरोसा देता है। भरत के लिए परिवार का महत्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है और वह अपने पिता के साथ जीने का व्रत लेता है।

भरत को उनके भाइयों की उपस्थिति के बिना कोई सुख नहीं मिलता है। उनके विदेशी वनवास के दौरान, भरत अपने भाइयों की वापसी की इच्छा को पूरा करने के लिए अग्नि की उपासना करता है और उन्हें अपने पाद प्रणाम करता है। उनका विश्वास है कि राजसी ताज सिर्फ उनके भाइयों के चरणों में ही स्थान पाता है और वह इसे धर्मप्रियता के प्रतीक के रूप में देखता है।

भरत को राज्य के प्रति अपना प्रेम दिखाने के लिए भी प्रस्तुत किया जाता है। उन्हें राम की अभावित राज्य-आपूर्ति को पूरा करने के लिए प्रबंध करना पड़ता है और वह अपनी प्रतिष्ठा और गरिमा को एक तरफ रखकर राज्य की भलाई के लिए कार्य करता है। भरत को अपनी उच्चतम सामर्थ्य के कारण प्रशासनिक कुशलता का बहुत अच्छा ज्ञान होता है और वह अपनी विश्वासयोग्यता को प्रमाणित करता है।

भरत को रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसका प्रेम, भक्ति, और धर्मानुसार आचरण सभी के द्वारा प्रशंसा किया जाता है। उसकी उपस्थिति रामचंद्र जी के लिए महत्वपूर्ण होती है और उसके धर्मप्रिय और न्यायप्रियता के गुणों को प्रशंसा करती है। उसके संयमित और समर्पित चरित्र को देखकर लोग उसे एक प्रेरणादायक उदाहरण मानते हैं।