चुलकाना धाम

chulkana dham daily darshan

चुलकाना धाम - जहाँ किया शीश का दान

ॐ श्री श्याम देवाय नमः

जहां दिया शीश का दान वह भूमि है चुलकाना धाम।।
जहां प्रकट हुए बाबा श्याम वह भूमि है खाटू धाम।।

यह महाभारतकालीन प्राचीन प्रसिद्ध स्थल हरियाणा राज्य के पानीपत जिले के समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव है जो अब *चुलकाना धाम* के नाम से प्रसिद्ध है। यही वह पवित्र स्थान है, जहां पर बाबा (बर्बरीक) ने ब्राह्मण भेष में आये भगवान श्री कृष्ण को अपने शीश का दान दिया था।

In Detailed :

प्राचीन समय की बात है जब त्रेतायुग में चुनकट ऋषि लकीसर बाबा नौलखा बाग में घोर तपस्या कर रहे थे। उसी राज्य में एक चकवाबैन नाम के राजा हुआ करते थे। जो एक चक्रवर्ती सम्राष्ट थे। जिनका पूरे पृथ्वी लोक और मृत्यु लोक पर राज्य हुआ करता था। एक दिन उन्होंने अपने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी जीव मेरे राज्य में हैं वो मेरा ही अन्न-जल ग्रहण करेगा। यह सूचना जब ऋषि लकीसर को पता चली तो बाबा ने राजा को एक संदेश भेजा कि मैं आपका अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा। मेरी तपोभूमि में (नौलखा बाग) हर तरह की वनस्पति है और मेरा जीवनयापन यहीं से हो जायेगा। जब यह बात राजा को पता चली तो राजा ने एक संदेश भिजवाया कि यदि मेरे राज्य का अन्न-जल ग्रहण नहीं करोगे तो मेरे राज्य से बाहर चले जाओ या फिर मेरे साथ युद्ध करो। बाबा ने उसके राज्य को छोड़ना ही उचित समझा और वो यहां से चले गये। जब चलते-चलते पृथ्वी के आखिरी छोर पर पहुंचे तो उन्हें पानी ही पानी नजर आ रहा था।

तब उसी दौरान भगवान ने एक लीला दिखाई बाबा को एक बहुत ही सुन्दर हिरण जो कि सागर के किनारे अपनी प्यास बुझाने के लिये आया, जैसे ही वह पानी पीने लगा तभी पीछे से एक शेर दौड़ता हुआ आ रहा है हिरण को दिखाई दिया। तभी हिरण ने आवाज लगाई कि हे राजन्! दुहाई हो आपके राज्य में एक निर्बल की हत्या होने जा रही है, कृपया बचाओ, तभी अचानक कहीं से एक हथियार आता है और उस शेर की गर्दन को काटकर अलग कर देता है। तभी बाबा लकीसर को यह आभास होता है कि यहां भी उसका राज है और वहां भी, तो क्यों न अपनी ही तपोभूमि में जाकर उसका सामना किया जाये। तब बाबा वापिस अपने उसी स्थान नौलखा बाग में (चुलकाना धाम) पहुंच गये। जब राजा को पता चला कि बाबा लकीसर फिर वापिस आ गये हैं तो उन्होंने बाबा को संदेश भेजा कि तुम फिर क्यों आ गये हो। तब बाबा ने जवाब में कहा कि मैं अब इसी राज्य में रहूंगा और आपका अन्न-जल भी कभी ग्रहण नहीं करूंगा।

तब राजा ने क्रोधित होकर बाबा को युद्ध के लिये कहा, तब बाबा चुनकट ने एक रात का समय मांगा । अगली सुबह उनसे बातचीत करने को कहा। रात्रि में बाबा ने भगवान के नाम की धूनी लगाई ब्रह्ममुहूर्त में भगवान लक्ष्मी-नारायण प्रकट हुये और बाबा से कहा कि आप उस राजा से युद्ध कीजिये और ये लो 2½ कुशा 2½ युगों तक चलेगी। एक त्रेतायुग में, दूसरी द्वापर युग में द्रोपदी के रूप में और तीसरी कलियुग में। आपको कुशा को तोड़-तोड़ कर फेंकनी है। बाबा ने सुबह वैसे ही किया जैसे ही राजा की सेना बाबा की ओर युद्ध करने के लिये बढ़ी, तभी बाबा एक टुकड़ा कुशा को तोड़कर फेंक देते, परमाणु बम की तरह कुशा विनाश कर रही थी। राजा का सब कुछ नष्ट हो गया। तभी से बाबा चुनकट के इस नौलखा बाग का नाम चुनकट वाला पड़ गया जो आज चुलकाना धाम के नाम से विख्यात है।

बाबा ने दिया शीश का दान

हरियाणा राज्य के पानीपत जिला में समालखा कस्बे से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव जो अब चुलकाना धाम से प्रसिद्ध है। यही वह पवित्र स्थान हैं जहां पर बाबा ने शीश का दान दिया था। चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ स्थान माना गया है। चुलकाना धाम का सम्बन्ध महाभारत से जुड़ा है। पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य की पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ था। इनका पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुये जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकता थे। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ, लेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाये तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है। मातृभक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार किया, इसलिये उनको हारे का सहारा भी कहा जाता है। माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिये घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। उनके घोड़े का नाम लीला था, जिससे लीला का असवार भी कहा जाता है।

युद्ध में पहुंचते ही उनका विशाल रूप देखकर सैनिक डर गये। श्री कृष्ण ने उनका परिचय जानने के बाद ही पांडवों को आने के लिये कहा। श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक के पास पंहुचे। बर्बरीक उस समय पूजा में लीन थे। पूजा खत्म होने के बाद बर्बरीक ने ब्राह्मण के रूप में देखकर श्री कृष्ण को कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? श्री कृष्ण ने कहा कि जो मांगू क्या आप उसे दे सकते हो। बर्बरीक ने कहा कि मेरे पास देने के लिये कुछ नहीं है, पर फिर भी आपकी दृष्टि में कुछ है तो मैं देने के लिये तैयार हूं। श्री कृष्ण ने शीश का दान मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं शीश दान दूंगा, लेकिन एक ब्राह्मण कभी शीश दान नहीं मांगता। आप सच बतायें कौन हो? श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुये तो उन्होंने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? तब श्री कृष्ण ने कहा कि इस युद्ध की सफलता के लिये किसी महाबली की बली चाहिये। धरती पर तीन वीर महाबली हैं मैं, अर्जुन और तीसरे तुम हो, क्योंकि तुम पांडव कुल से हो। रक्षा के लिये तुम्हारा बलिदान सदैव याद रखा जायेगा। बर्बरीक ने देवी देवताओं का वंदन किया और माता को नमन कर एक ही वार में शीश को धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को शीश दान कर दिया। श्री कृष्ण ने शीश को अपने हाथ में ले अमृत से सींचकर अमर करते हुये एक टीले पर रखवा दिया। जिस स्थान पर शीश रखा गया वो पवित्र स्थान चुलकाना धाम है और जिसे आज हम प्राचीन सिद्ध श्री श्याम मन्दिर चुलकाना धाम के नाम से सम्बोधित करते हैं।

अद्भुत दृश्य

श्याम मन्दिर के पास एक पीपल का पेड़ है। पीपल के पेड़ के पत्तों में आज भी छेद हैं। जिसे मध्ययुग में महाभारत के समय में वीर बर्बरीक ने अपने बाणों से बेधा था।

चुलकाना धाम का मेला

चुलकाना धाम में एकादशी व द्वादशी पर मेला लगता है। बाबा खाटूश्याम मंदिर में दर्शन के लिये भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ उमड़ जाती है। देर शाम तक दर्शन के लिये भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। हाथों में पीले रंग के झण्डे लिये भक्त बाबाश्याम के जयकारा व नारे लगाते रहते हैं। भक्तों के द्वारा बाबा की पालकी भी निकाली जाती है। हर साल फाल्गुन मास की द्वादशी को श्याम बाबा मंदिर में उनकी पालकी निकाली जाती है। विशाल मेला लगता है। चुलकाना धाम में कई राज्यों से हजारों भक्त दर्शन के लिये आते हैं। मेले के कारण एक-दो दिन पूर्व से ही भक्तों का मन्दिर में आना शुरू हो जाता है। रात में भक्तों के द्वारा बाबाश्याम का जागरण व भजन संध्या करते हैं और प्रातकाल से बाबाश्याम के दर्शन प्राप्त कर अपनी मन्नत मांगते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त बाबा श्याम से मन्नत मांगते हैं उनकी मन्नत खाली नहीं जाती है।

बाबाश्याम पूजन-विधि

जो भक्तगण सच्चे तन-मन-धन से पूजा करते हैं, भगवान उनकी मनोकामनाऐं जरूर स्वीकार करते हैं। किसी भी देवी-देवताओं की कोई विशेष पूजा-विधि नहीं है, वे तो केवल प्रेम के भूखे हैं। आप अपने आपको पूर्णरूप से समर्पित करके जिस विधि से उनकी पूजा-आराधना करेंगे वे स्वीकार कर लेगें।

पूजन-विधि के कुछ नियम

1. पूजन के लिये आपके पास खाटूश्याम जी की फोटो या मूर्ति होनी चाहिये।
2. गंधा, दीपा, धूप, नेविदयम, पुष्पमाला आपके पास होनी चाहिये।
3. श्याम बाबा की फोटो या मूर्ति को पंचामृत या फिर दूध-दही और फिर स्वच्छ जल से स्नान कराके फिर रेशम के मुलायम कपड़े से साफ करें और पुष्ममाला से श्रृंगार करें।
4. अब पूजन शुरू करने से पहले श्यामबाबा की ज्योत ले एक घी का दीपक जलाये और अगरबत्ती या धूपबत्ती जलायें।
5. खाटूश्याम बाबा को अब भोग में आप चूरमा दाल बाटी या मावे के पेद्दे काम में ले सकते हैं।
6. अब श्यामबाबा की आरती करें और आशीर्वाद लें।
7. खाटूश्याम बाबा के 11 जयकारे लगायें-जय श्री श्याम, जय खाटूवाले श्याम, जय हो शीश के दानी, जय हो कलियुग देव की, जय खाटूनरेश, जय हो खाटूवाले नाथ की, जय मोर्वीनन्दन, जय मोर्वये, लीले के अश्वार की जय, लखदातार की जय, हारे के सहारे की जय।

चुलकाना धाम मन्दिर समय

हफ्ते के सातो दिन सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक एवं शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक (7:00 AM - 12:00 PM & 4:00 PM - 9:00 PM)

चुलकाना धाम मन्दिर कैसे पहुंचे

आप देश के किसी भी कोने से दिल्ली आराम से पहुंच सकते है, दिल्ली देश के सभी मुख्य शहरो से रेल, हवाई जहाज और राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। मैं अब आपको दिल्ली पहुंच के चुलकाना धाम मन्दिर तक पहुंचने का तरीका बताऊंगा: चुलकाना धाम, हरियाणा राज्य के जिला पानीपत, तहसील समालखा में स्थित है। जहां पर बाबाश्याम का भव्य मन्दिर है। यदि आप ट्रेन से आना चाहते हैं तो चुलकाना धाम से सबसे नजदीक रेलवे भोडवाल मजरी और समालखा है। यहां पर उतरने के पश्चात् आपको आटो रिक्शा के माध्यम से चुलकाना धाम पहुंचना पड़ेगा।

चुलकाना धाम मन्दिर के पास क्या खाये

मदिर परिसर के पास आपको बहुत से शाकाहारी व्यंजन खाने के लिए मिल जायेंगे पर क्यूंकि यह मंदिर परिसर के पास है तो आपको सिर्फ शाकाहारी खाना ही मिल पायेगा जिनका आप लुत्फ़ ले सकते है।

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रामायण : उपन्यास के प्रमुख चरित्र

Sage Vishwamitra - मुनि विश्वामित्र

मुनि विश्वामित्र रामायण में एक महत्वपूर्ण चरित्र हैं। वह एक प्राचीन ऋषि थे और महाराज जनक के दरबार में राजगुरु के रूप में सेवा करते थे। विश्वामित्र ऋषि की खासता थी, वे बहुत ही तेजस्वी थे और शक्तिशाली तपस्वी ऋषि माने जाते थे। उन्होंने अपने तपस्या के बाल परमेश्वर से इतना वरदान प्राप्त किया था कि वे दैत्यों और राक्षसों को भी चुनौती दे सकते थे।

विश्वामित्र का जन्म एक राजपुरोहित के घर में हुआ था। वे बाल्यकाल से ही ध्यान और तपस्या में रत थे। उनकी मां ने उन्हें धर्म, त्याग, और सत्य के महत्व के बारे में शिक्षा दी थी। विश्वामित्र ने अपनी मां की शिक्षा का पालन किया और उन्होंने ऋषि बनने का संकल्प बना लिया।

विश्वामित्र की शक्तियों और तपस्या के बारे में सबको ज्ञान हो गया था। एक बार वे राजा जनक के यज्ञ को नष्ट करने वाले राक्षस तड़का के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए देखे गए। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया और तड़का को पराजित कर दिया। इसके बाद से विश्वामित्र की मान्यता और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

विश्वामित्र को एक और महत्वपूर्ण कार्य देने के लिए राजा जनक ने उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित किया। वह कार्य था स्वयंवर में धनुष तोड़ने का। स्वयंवर में शानदा नामक देवी धनुष उठाने वाले वीर श्रीराम को अपनी पत्नी बनाने का प्रतिश्रवण किया गया था। विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ स्वयंवर में गए और वहां उन्होंने राम को धनुष तोड़ने के लिए प्रेरित किया। राम ने धनुष तोड़ दिया और शानदा को जीता लिया। यह घटना विश्वामित्र के लिए बहुत गर्व की बात थी।

विश्वामित्र के पश्चात् राम को गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने का निमंत्रण मिला। राम और लक्ष्मण ने उसे स्वीकार कर लिया और वे विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में गए। आश्रम में विश्वामित्र ने राम को वेद, धर्म, युद्ध, और अन्य ज्ञान की शिक्षा दी। राम ने उनकी शिक्षा को गहराई से समझा और उनके मार्गदर्शन में उनका आदर्श बनाया।

विश्वामित्र के साथ बिताए दिन राम और लक्ष्मण के लिए अनुभवमय और सीखदायक रहे। विश्वामित्र ने उन्हें विभिन्न राक्षसों और दुष्ट शक्तियों से लड़ने की कला सिखाई और उन्हें योग्यता और धैर्य के साथ लड़ाई लड़ने का अभ्यास कराया। विश्वामित्र की मार्गदर्शन में राम ने अनेक दुष्ट राक्षसों को विजयी किया और उनकी शक्तियों को नष्ट किया।

विश्वामित्र राम को न शिर्षासन की कला, न सचेतता, और नींद के समय कौन से आश्रय स्थल में सोना चाहिए, जैसे की तपस्या के दौरान आपको ध्यान और सचेत रहना चाहिए। विश्वामित्र ने राम को अनेक उपयोगी वरदान दिए जैसे की ब्रह्मास्त्र और शक्ति अस्त्र।

मुनि विश्वामित्र रामायण के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक हैं और उनका चरित्र विशेष रूप से उनकी शक्तियों, तपस्या और गुरुत्व के कारण प्रमुख बन गया है। उनकी सीख और मार्गदर्शन से राम ने अनेक संघर्षों का सामना किया और अद्वितीय वीरता प्रदर्शित की। विश्वामित्र का परिचय महारामायण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उनका चरित्र धर्म, त्याग, और सत्य के मार्ग का प्रतिष्ठान करता है।