चुलकाना धाम दैनिक दिव्य दर्शन

हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा

ॐ श्री श्याम देवाय नमः

जहां दिया शीश का दान वह भूमि है चुलकाना धाम।।
जहां प्रकट हुए बाबा श्याम वह भूमि है खाटू धाम।।

दुनिया में अनेकों मंदिर हैं, हर एक की अपनी कहानी और रहस्य है. ऐसा ही एक मंदिर हरियाणा राज्य के पानीपत के समालखा कस्बे से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव में है और अब ये गांव चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध है. यहां राजस्थान के सीकर में बसे खाटू श्याम का मंदिर है।

'हारे का सहारा' क्यों बने बर्बरीक

चुलकाना धाम की वह पावन धरा जहां बाबा श्याम जी ने अपने शीश का दान दिया। यह वही पावन धरा है जहां श्री कृष्ण भगवान जी ने महाबली दानी वीर बर्बरीक जी को विराट स्वरूप के दर्शन दिखलाए। हरियाणा राज्य के पानीपत के समालखा कस्बे से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना धाम प्रसिद्ध है। श्री श्याम खाटू वाले का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर चुलकाना गांव में है। जैसे ही गांव में मंदिर की स्थापना हुई और खाटू नरेश चुलकाना नरेश भी बन गए। चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है।

यही वह पवित्र स्थान हैं जहां पर बाबा ने शीश का दान दिया था। चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ स्थान माना गया है। चुलकाना धाम का सम्बन्ध महाभारत से जुड़ा है। पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य की पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ था। इनका पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुये जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकता थे। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ, लेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाये तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है। मातृभक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार किया, इसलिये उनको हारे का सहारा भी कहा जाता है। माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिये घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। उनके घोड़े का नाम लीला था, जिससे लीला का असवार भी कहा जाता है।

खाटू धाम को जाना है श्याम का दर्शन पाना है

खाटू श्याम जी के दरबार में जो आता है, उसके ग़म सब कहीं खो जाते हैं।

खाटू श्याम जी के दरबार में जो आता है, वह अपने ग़मों को साथ लेकर आता है और वहां पर उन ग़मों को छोड़कर आगे बढ़ता है। खाटू श्याम जी के भक्ति और प्रेम में खोने से उनके दरबार में हर ग़म को सुख में बदलने की शक्ति मिलती है। यहां पर आने वाले भक्तों के दिलों में शांति और आनंद की बोछार बहती है, जिनसे उनका मानसिक स्थिति मजबूत होता है। खाटू श्याम जी के दर्शन से मनोबल बढ़ता है और विचारों में पॉजिटिविटी आती है।

खाटू श्याम की कृपा पाने के लिए हमें सिर्फ अपनी आँखें बंद करनी होती है, और वही अद्भुत अनुभव हमें मिलता है जो हमारे दिल की सबसे गहरी ख्वाहिश होती है। जब हम खाटू श्याम के दरबार में आते हैं, तो हमारी आत्मा उनके प्रेम और करुणा से भर जाती है। वहां पर हम अपने मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। खाटू श्याम जी के प्यार में खोने से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है और हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

खाटू श्याम जी के दर्शन का एक विशेष महत्व होता है, क्योंकि वहां हम अपने अंतरात्मा से मिलते हैं और जीवन के असली अर्थ को समझते हैं। उनके दर्शन से हमारी मानसिकता पॉजिटिव होती है और हम अपने दिनचर्या में सकारात्मकता और साहस भरते हैं। खाटू श्याम जी की कृपा से हमें जीवन के सभी पहलुओं को सहने की शक्ति मिलती है और हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं।

खाटू श्याम जी के दर्शन से हमें आत्मा की शांति और आनंद मिलता है, और हम अपने जीवन को खुशियों से भर देते हैं। उनके प्रेम में हम सभी भक्ति और समर्पण की भावना से जीवन को आनंदित बनाते हैं और हमारी आत्मा को शांति मिलती है। खाटू श्याम जी की महिमा अनंत है और उनके दर्शन से हमारा जीवन परिपूर्ण होता है।

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रामायण : उपन्यास के प्रमुख चरित्र

Tara - तारा

श्रीमद् रामायण में तारा का चरित्र एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण रूप से उभरता है। तारा, किष्किंधा नगर के महान वानर राजा वाली की पत्नी थीं। वाली और तारा का विवाह वानर समुदाय में प्रेम के एक उदाहरण के रूप में माना जाता था। तारा का पूरा नाम अत्यंत सुंदरी ताराका था, जो उनकी सुंदरता को व्यक्त करता था। उनकी स्नेही और सदैव परोपकारी स्वभाव ने उन्हें वानर समुदाय में महत्वपूर्ण बना दिया था।

तारा एक बुद्धिमान, विद्वान् और साहसिक महिला थीं। वाली की साहसिक गुणवत्ता के कारण, उन्होंने वानरों के बीच एक अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बनाया था। उन्होंने वानर समुदाय के सभी सदस्यों का सम्मान किया और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए प्रयास किए। तारा बुद्धिमान वैद्यकीय ज्ञान की धारा थीं और उन्होंने वानर सेना की चिकित्सा और उनकी सेवाओं का प्रबंधन किया। वानर समुदाय में उनका उदाहरणीय आदर्श स्थान था और वे वानरों के लिए एक माता के समान थीं।

तारा की उपस्थिति वानर सेना के लिए एक आधारभूत सामर्थ्य थी। वाली द्वारा नेतृत्व किए जाने वाले सेनानायक के रूप में तारा की बुद्धि और वाणी का महत्वपूर्ण योगदान था। वानर सेना के प्रमुख नेता के रूप में, उन्होंने वानरों के बीच न्याय और समानता के सिद्धांत को स्थापित किया। तारा वाली के साथ एक ऐसी जीवन जीती थी जिसमें संयम और न्याय का महत्वपूर्ण स्थान था।

तारा अपनी श्रद्धा और निष्ठा के लिए भी प्रसिद्ध थीं। उन्होंने वानर समुदाय में आध्यात्मिक संघ के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने वानर समुदाय के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा दी और उनके आध्यात्मिक विकास का समर्थन किया। तारा धार्मिक और मनोवैज्ञानिक सुधारों को समर्थन करती थीं और उन्होंने वानर समुदाय के सदस्यों को धार्मिकता के मार्ग पर अग्रसर किया।

तारा रामचरितमानस में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वाल्मीकि जी महर्षि द्वारा लिखित इस ग्रंथ में उनका वर्णन किया गया है और उनकी साहसिकता, विवेक और धार्मिकता की प्रशंसा की गई है। उन्होंने लक्ष्मण के साथ राम को सम्पूर्णता के रूप में शरण दी और उन्हें वानर सेना का नेतृत्व सौंपा।

तारा की प्रतिभा, शक्ति और साहस ने उन्हें एक प्रमुख चरित्र बना दिया है। उनका प्रेम और समर्पण उन्हें वानर समुदाय में महत्वपूर्ण स्थान देता है और उन्हें एक आदर्श पत्नी के रूप में मान्यता प्राप्त होती है। उनका चरित्र रामायण के महान काव्य में सुंदरता और प्रेरणा का स्रोत बनता है।